भारतीय वैज्ञानिक निक्कू मधुसूदन कौन हैं, जिनकी एलियन ग्रह की खोज ने किया कमाल, दुनिया भर में हो रही चर्चा
Updated on
18-04-2025 02:11 PM
लंदन: वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से 120 प्रकाश वर्ष दूर ग्रह पर जीवन को लेकर एक अभूतपूर्व खोज की है, जो आने वाले समय में एलियंस को लेकर हमारी सोच को बदल सकती है। दिलचस्प बात है कि इस अभूतपूर्व खोज को भारतीय मूल के कैम्ब्रिज प्रोफेसर डॉक्टर निक्कू मधुसूदन ने किया है। नासा के जेम्स वेब टेलीस्कोप (JWST) के डेटा का इस्तेमाल करते हुए डॉ. मधुसूदन और उनकी टीम ने सुदूर ग्रह K2-18b के वायुमंडल में मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसे अणुओं का पता लगाया है, जो जीवन की खोज में बड़ा कदम है।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, डॉक्टर मधुसूदन ने इसे पृथ्वी से बाहर जीवन का अब तक का सबसे मजबूत सबूत बताया है। उन्होंने कहा, 'मैं वास्तविक रूप से कह सकता हूं कि हम एक से दो साल के भीतर इस संकेत की पुष्टि कर सकते हैं।' वैज्ञानिकों का मानना है कि के2-18बी ग्रह एक हाइसीन वर्ल्ड हो सकता है। हाइसीन वर्ल्ड से मतलब एक ऐसी दुनिया से है, जहां हाइड्रोजन से समृद्ध वायुमंडल और महासागरों की मौजूदगी हो। एक ऐसा संयोजन, जो जीवन की संभावना के लिए अनुकूल है।
क्या है सुदूर ग्रह K2-18b?
के2-18बी एक एक्सोप्लैनेट है, जो लाल बौने तारे K2-18 की परिक्रमा करता है और इसके रहने योग्य क्षेत्र में स्थित है। यह ग्रह पृथ्वी से 2.6 गुना बड़ा और 8.6 गुना अधिक भारी है। जेम्स वेब टेलीस्कोप के नियर-इन्फ्रारेड इमेजर एंड स्लिटलेस स्पेक्ट्रोग्राफ और नियर-इन्फ्रारेड स्पेक्टोग्राफ ने इस ग्रह पर अणुओं का पता लगाया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण खोज डाइमिथाइल सल्फाइड (DMS) का संभावित निशान था। पृथ्वी पर यह अणु केवल जीवित जीवों, खास तौर पर समुद्री फाइटोप्लाकंटन से निर्मित होता है।
भारत में हुई स्नातक तक पढ़ाई
भारतीय मूल के डॉ. निक्कू मधूसूदन ने ग्रहों के वायुमंडल, अंदरूनी भाग और बायोसिग्नेचर पर अपने काम के जरिए प्रसिद्धि पाई है। साल 1980 में भारत में जन्मे मधुसूदन ने अपनी अंडरग्रेजुएट की पढ़ाई वाराणसी के आईआईटी-बीएचयू से की। इसके बाद वह पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए मेसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) चले गए। यहीं से उन्होंने प्लैनेटरी साइंस में अपनी पीएचडी की डिग्री हासिल की। उन्होंने एक्सोप्लैनेट रिसर्च की मशहूर एक्सपर्ट डॉ. सारा सीगर के मार्गदर्शन में काम किया।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर
वर्तमान में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के खगोल विज्ञान संस्थान में प्रोफेसर हैं। उनका काम एक्सोप्लैनेट के निर्माण और वायुमंडलीय संरचना पर केंद्रित है कि ये दूर के ग्रह कैसे जीवन का समर्थन कर सकते हैं। उनके शोध को यूरोपीय खगोलीय सोसायटी और इंटरनेशनल यूनियन फॉर प्योर एंड एप्लाइड फिजिक्स से मान्यता मिली है। 2021 में, उन्होंने 'हाइसीन ग्रह' शब्द गढ़ा - महासागरों से ढके और हाइड्रोजन से भरपूर आसमान में लिपटे हुए ग्रह। उनका मानना है कि K2-18b उनमें से एक हो सकता है।
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